पिता की बेबसी बेटी से देखी नही गई। डोली सजी रह गई और अर्थी उठ गई। बिक गया था सब कुछ फिर भी कमी थी। बिक न जाए दहलीज़ इस बात से डर गई। किया था खून उसने अपने अरमानों का। बदचलन थी वो बेशर्मो में ये बात चल गई। जानवरों से भी बुरा है ये इंसानों का जहां। नहीं आना इस समाज में ये बात कह गई। बेटी थी मगर वो बेटे सा काम कर गई। पिता की ख़ातिर जय वो चुपचाप मर गई। Mritunjay Vishwakarma ©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri" जीवन हार गई। #best_poetry #Best_shayari #mjaivishwa #Smile