निगाहों से भी इश्क़ फ़क़त उसी पर बयाँ होता है, जिस शख़्स पर पूरी तरह यह दिल अयाँ होता है। बिछड़ भी जाये कोई सफ़र - ए - हयात में अग़र, बिछड़ कर भी वो हमसे पूरा जुदा कहाँ होता है। शब - ए - दैजूर में आँखें ढूँढती रहती हैं चाँद ही को, मैं सोचता हूँ जब नहीं होता वो पास तो कहाँ होता है। ये बरसाती आब, बर्क़, अब्र, ज़ुल्मत डराते हैं हमको, लेकिन जब साथ वो हों तो यही रूमानी समाँ होता है। यूँ तो खोल देती हैं निगाहें राज़ सभी लेकिन, कशमकश में रखता है वो इश्क़ जो निहाँ होता है। धड़कना भूल जाता है दिल, ख़्वाब सभी सो जाते हैं, उनके छूने से ही कमबख़्त लहू नसों में रवाँ होता है। लुभाता है उनका साथ इतना मुझे कि हर पल, वो होते हैं जहाँ ये "कातिब" भी वहाँ होता है। ©Prashant Shakun "कातिब" ❣️❣️❣️🖤❣️❣️❣️🖤❣️❣️❣️ फ़क़त ----- सिर्फ़ अयाँ ----- स्पष्ट, ज़ाहिर, खुला होना सफ़र-ए-हयात ----- ज़िंदगी का सफ़र शब-ए-दैजूर ----- अमावस्या की रात आब ----- पानी बर्क़ ----- बिजली अब्र ----- बादल