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कौन सा वो ज़ख्मे-दिल था जो तर-ओ-ताज़ा न था,  ज़िन्दग

कौन सा वो ज़ख्मे-दिल था जो तर-ओ-ताज़ा न था, 
ज़िन्दगी में इतने ग़म थे जिनका अंदाज़ा न था, 
'अर्श' उनकी झील सी आँखों का उसमें क्या क़ुसूर, 
डूबने वालों को ही गहराई का अंदाज़ा न था। sad
कौन सा वो ज़ख्मे-दिल था जो तर-ओ-ताज़ा न था, 
ज़िन्दगी में इतने ग़म थे जिनका अंदाज़ा न था, 
'अर्श' उनकी झील सी आँखों का उसमें क्या क़ुसूर, 
डूबने वालों को ही गहराई का अंदाज़ा न था। sad