बचपन में उड़ती तितलियाँ पकड़ अपनी आर्ट बुक में चिपकाने का ख़ासा शौक़ था मुझे। रंग बिरंगी सुंदर तितलियाँ बहुत अच्छी लगती थीं हर पन्ने पर। पापा अक्सर बहुत डाँटते थे मेरी इस हरकत पर, कहते थे, "तितलियाँ बाहर उड़ने के लिए हैं और तुम उन्हें मारकर अपनी बुक में लगाती हो" और मैं ग़ुस्सा होकर कहती "आपको कुछ नहीं पता वो बाहर रहकर क्या करेगीं? मैं उन्हें घर दे रही हूँ, संभालकर रख रही हूँ, कितनी सुंदर रंगीन लगती है मेरी आर्ट बुक उनसे।" पापा काम में व्यस्त रहते तो मुझे इस बात के लिए ज़्यादा रोक नहीं पाए। फिर मैं बड़ी होती गई और ये पागलपन भी कम होता गया। बाद में माँ ने बुक कबाड़ी को बेच दी। मैं भी उसके बारे में लगभग भूल चुकी थी। शादी के कुछ दिन बाद ससुराल में मैंने अपनी नौकरी जारी रखने की इच्छा ज़ाहिर की तो सब बोले, "अरे! तुम बाहर जाकर क्या करोगी? तुमसे घर कितना सुंदर रंगीन हो गया है, शोभा हो तुम हमारे घर की, घर में ही रहो।" अचानक हज़ारों मरी हुईं तितलियाँ मेरे चारों तरफ इकठ्ठा होने लगी, मेरा मन घबराने लगा, अंदर कुछ हो रहा था पेट में तितली जैसा.... अब ज़्यादा कुछ अंतर नहीं रहा था मुझमें और उन मरी हुई तितलियों में...कहानी एक सी दर्द एक सा.. #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqdidihindi #hinditales #तितली #microtale #hindiquotes