बिखरे पड़े है यूँ कोई समेटे तो कोई बात हो उलझे पड़े है यूँ कोई सुलझाए तो कोई बात हो ताउम्र तेरी खातिर बन्दगी की फिर तू मुझमे निखरे तो कोई बात हो