जो मौका-ए-हिज़्र पे न हो जाए, वो बारिश कैसी? जो ज़िंदा रहते न पूरी हो पाए, वो ख्वाहिश कैसी? हम साए करें तो कुछ दर्द से राबता भी बढ़े हमारा, दुश्मनों को करनी पड़ जाए, तो कत्ल-ए -साजिश कैसी? मेरे ही हुए थे चर्चे शहर - ए - आम, तब ही उम्मीद न थी, कि की जाएगी इजहार की नुमाइश ऐसी! सब क्या? हम तो खुदा तक रख आए थे, गिरवी अपना ज़ालिम ने, की थी आंखों से मदद की गुज़ारिश ऐसी! #nojotohindi #tamannaa