आग चूल्हे की बुझ गई है... भुख तो लगती हैं मगर...खाने का स्वाद भूलता जा रहा हूँ, क्या करु? जनाब! मजदूर हूँ, यू ही ठोकरे खा रहा हूँ ||१|| बड़ी दैनिय दशा है मेरी... रोज़ कुआं खोद कर रोज़ पानी पीए जा रहा हूँ, क्या करु? जनाब! मजदूर हूँ, यू ही ठोकरे खा रहा हूँ ||२|| ऐसी स्थिति आन पड़ी है... फिर कुरबान हुऐ जा रहा हूँ, क्या करु? जनाब! मजदूर हूँ, यू ही ठोकरे खा रहा हूँ ||३|| बना कर महल दूसरो के... पेट की आग बुझा रहा हूँ, क्या करु? जनाब! मजदूर हूँ, यू ही ठोकरे खा रहा हूँ ||४|| देख सकूँ कुछ छोटे-छोटे से सपने... इतना वक़्त भी कहाँ जुटा पा रहा हूँ, क्या करु? जनाब! मजदूर हूँ, यू ही ठोकरे खा रहा हूँ ||५|| #alone #CoronaWarrior #coronavirus #majdoor #DilSeThankYou #poem #Darad #Nojoto