--------------------------- चलों जनाब गुमनाम ही रहने दो के आशिकों में हमारा नाम रहने दो मैं आज भी तेरी पनाहों में गुम हूँ ऐसा एक भरम एक मकान रहने दो आज भी तेरी जुल्फों से उल्झी रहूँ इश्क़ में तुम मुझे बदनाम रहने दो माना हवा का रुख बदल चुका है उसी पेड़ की तुम मुझे छाँव रहने दो कुछ नहीं चाहिए था इश्क़ में हमदम कदमों का वो आख़िरी निशाना रहने दो अब उजड़ा हुआ है मेरा आशियाना मगर सुनों ज़मी पे आसमान रहने दो ।। ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1027 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।