मैं रात भर मैं रा गम लिखता रहां एक सुबह की आश ना रखी तुम चेहरों की तरहां नाम बदलते रहें । मैं अखबारों की तरहां सुर्खियों मैं छाया रहा जख्म गहरा था मिटा ना सका मरहम कोई किताब थी मैं । कलम चलाता रहा kartik ji...।। sanju panwar #एक_कलम_मिलीं_झुकीं_हुई #एक_सर_मिला_कटा_हुआ_एक_आश #मिलीं #भुझी_हुई_ना_मै_कह_सका_ना_मैं_जता #सका ✍ #kartik_ji...#k