एक ग़ज़ल हर वक़्त चल रही है नई चाल ज़िंदगी। बदहाल आदमी की ये बदहाल ज़िंदगी। हासिल है मुहब्बत का फ़क़त हिज्र ही अगर- सो मैंने कह दिया इसे जंजाल ज़िंदगी। पहले तो मेरी नींद मेरे ख़्वाब मेरे थे- दिल लुट गया सो हो गयी कंगाल ज़िंदगी। कुछ को मिली ख़ुशी तो कोई ग़मज़दा भी है- बढ़ती है रँग बदल के यूँ हर साल ज़िंदगी। बस मौत ही मिलेगी तुझे तेरे इश्क़ में- बुनती है रोज़-रोज़ नये जाल ज़िंदगी। प्रशान्त मिश्रा मन #NojotoQuote #ज़िंदगी