धान धरा जल में, कीट दे रहे हो, कर सबकुछ मलिन, ढीठ हो रहे हो, देकर मुझे लम्पी, कर मुझे बेघर, परिचर्या का ढिंढोरा पीट रहे हो ! गलतियों पर, तिरपाल दे रहे हो, मेरी नस्लों को, सवाल दे रहे हो, कर कुदरत से रोज खिलवाड़, अपनेआप को, नंदलाल कह रहे हो ! औषधियों का, जंजाल दे रहे हो, बेमतलब ही, बेहाल हों रहे हो, गोधन से परहेज करते रहे ताउम्र, आज खुद को, गोपाल कह रहे हो। लालसा छोड़, मिलवाट तोड़, अमृत उगा, मुझे घर से जोड़, ना कोई जहर होगा, ना कोई कहर, घर घर फिर होगी बछड़ों की दौड़। ©Anand Dadhich #गोधन #लम्पी_पर_कविता #poemoncow #cowdisease #kaviananddadhich #poetananddadhich #hindipoetry