समाज एवं लोगों के दोगले व्यवहार पर व्यग्य हैं यह मेरी कविता खुद कि दकियानूसी विचारधारा मे कभी कभी समाज भी फंस जाता हैं । जहाँ शांति के नाम पर लोगों कि हत्या कर दि जाती , सरंक्षण के नाम पर आदिवासियों को उनके घरों से निकालते हैं और अगर तुम सवाल उठाओ कि ऐसा क्यों हैं तो जबाव मिलता हैं कि बस ऐसा हि हैं और तुम्हें मानना ही पडेगा । यहाँ 'भगवान हैं' एक प्रकार का वय्गं है।
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