आधुनिकता के देखो शिकार सब हो गए हैं *** कहाँ हूँ मैं, अपने आप को अपनों में ढूंढता हूँ देखो व्यस्तता में अपना अक्स खोजता हूँ, बेतहाशा बढ़ रहा है जंगल चकाचौंध का लग गई है नज़र नज़रिए को, रोज देखता हूँ | अभिलाषाएँ अब महत्वाकांक्षाएँ हो गई हैं झुग्गियाँ अब अट्टालिकाएं आकाशी हो गई हैं, लगता है अमरबेल अब पल रही हैं इंसान में सीढियाँ देखो तो अब लिफ्ट में शिफ्ट हो गई हैं | भलमनसाहत आम आदमी की आफत हो गई है, सहानुभूति सिमटकर संवेग रहित हो गई है, बिगाड़ कर संस्कृति को सब सभ्य कहला रहें हैं मर्यादा सीमा तोड़ कर जब से बेपरवाह स्वच्छंदता हुई है | चिराग़ घरों के बुझे बुझे बल्ब हो गए हैं संस्कार नये सबके बड़े बड़े विकार हो गए हैं, धिक्कार का ज़माना चला गया दिखता है आधुनिकता के देखो शिकार सब हो गए हैं | गैरों की कहाँ, यहाँ तो अपनों की भी फ़िक्र नहीं है फेफड़े हैं-मगर लफड़ो जैसे, ज़िगर नहीं है, भरोसा नहीं रहा हाथ का हाथ पर साथ के लिए देखिए तो, जैसे जिंदगी की भी कद्र नहीं है | #glal #insaan #adhunikta #hindipoetry #hindipoet #hindikavita #yqbaba #yqdidi