अविचल पर्वत की ममता बनकर नदी बही क्षमता बन जिसने सागर की अनगिन चोट सही बाहों में भर चंचल समीर को दुलराया सोचा ना बदले में तुमने ख़ुद क्या पाया जूझे प्रभंजनों से बलभर तुम तो भूधर सच है मनमानी सबकी तुमने बहुत सही जग तुमको क्या कहता है कुछ परवाह नहीं एकाकी पन की पीड़ा तक तुमने नहीं कही उतुंग शिखर यह मौन तुम्हारा गरिमामय आंचल में जिसके हुआ विवेकी सूर्य उदय प्रज्ञान जहां खिलता है जीवन प्रेम सदय आनंदमयी रहता है निश्छल सरल हृदय है राशि राशि उज्ज्वल परिचायक दृढ़ता की है जहां विकसती नेह संजीवनी जीवन की #toyou #yqmoutains #yqgrace #yqpersonality #yqdetermination #yqstateofmind #yqoutlook