विवेक रंजन अग्निहोत्री की चर्चित फिल्म का कश्मीर फाइल्स ने दर्शकों की छाई एक चुप्पी को तोड़ा है यह चुप्पी 1990 में कश्मीरी हिंदुओं के सुनियोजित नरसंहार से जुड़ी है जिस पर कदम पंथनिरपेक्ष तबके ने जिस प्रकार का आवरण डाला हुआ था इस्लामिक जिहादियों के हाथों में राज्य में अल्पसंख्यक हिंदुओं के उससे नरसा में लाखों की तादात में लोगों को अपनी जन्मभूमि कर्मभूमि और पुण्य भूमि छोड़ने को विवश कर दिया था नरसिंह घाट के समय की कल्पना है कि फरहान होने लगती है जब जिहादियों और आतंकियों ने रेलवे चावल वाली का नारा दिया था उसका मतलब था कि यह तो मन तारण हो जाओ या गाड़ी छोड़ जाओ या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ कश्मीर घाटी की मस्जिदों से बार-बार ऐसे ऐलान हो रहे थे सड़कों पर जमा हिंसक भीड़ की जुबान पर एक ही जुनून चढ़ा हुआ था हिंदुओं के घरों को आग लगाने के हवाले किए जा रहा था ऐसा लगता है कि फिल्म के बाद अब पीड़ितों के सब्र का बांध टूट गया बीते 32 वर्ष से कश्मीर हिंदुओं ने जैसा कर उसके भीतर दबाए रखें उसी अब टीवी चैनल की चर्चाओं में अभिव्यक्त मिल रही है उस यात्रा भरे दौरान में किसी प्रकृतिक जीवित बचे कश्मीर दा हिंदू उस समय के खौफनाक घटना क्रम की स्मृति साझा कर रहे हैं तब उन्हें जम्मू से लेकर दिल्ली तक तबकों में रहकर गुजारा करना पड़ा उस दौरान के संवेदनशील सरकारों को उनसे कोई शक और नहीं तो आधा कश्मीरी फाइल्स वास्तव में ऐसे ही भक्तों बोगियों के उन लोगों पर बनी फिल्म है जो अपनी कहानी सुनाने के लिए जीवित रह गए कश्मीर घाटी में हिंदुओं पर हमले की शुरुआत तो पिछली सदी के नौवें दशक के मध्य से हुई थी ©Ek villain #षड्यंत्र को बेनकाब करती फिल्म #selfhate