" प्रेम कब हो जाता है पता ही नहीं चलता " ये बात सभी को सुंदर और सहज लगती है, मगर " प्रेम कब समाप्त हो गया पता ही नहीं चला " ये कथन असंगत और असुंदर प्रतीत होता है ! यानि प्रेम का कभी भी हो जाना हम सबको स्वीकार है, और समाप्त हो जाना विरोधाभासी ? यदि प्रेम का स्वतः हो जाना उसकी सहजता है तो प्रेम का स्वतः समाप्त हो जाना भी सहज ही है, प्रेम का होना और समाप्त होना प्राकृतिक है, इसे हम अपनी सन्तुष्टता से निर्धारित नहीं कर सकते सच तो यह है कि हम सभी अनुबंधों में इतना जकड़े हुए हैं कि हर चीज़ में निश्चितता चाहते हैं, यह तो प्रकृति नहीं है ! प्रेम दीर्घायु हो सकता है निश्चित नहीं..! - राय साहब बनारस वाले (प्रेम अंतराल विशेषज्ञ)