कमसिन इश्क - कुछ अंश जब रात ढले और ख्वाब आये, जब नीद खुले और याद आये, जब इश्क की गलियां रंगीन हो, जब यादें भी तुम्हारी हसीन हो, जब जुल्फ तुम्हारी लहराये अम्बर पे घटायें छा जायें जब सुबह हमारी आख खुले, ख्वाबों मे सारी रात ढले, जब सर्द चादनी रातो में तू घर से बाहर आ जाये, ये चाँद भी तुझको देखे तो हौले से शरमा जाए ये तेरे रुखसारों पे जो लाली है लोगो को जलाने वाली है क्या कहूँ कि तुम्हारी खामोशी ने अब चैन हमारा छीना है। इश्क बड़ा बेदर्द है यारों मुश्किल कर देता जीना है।। @dil_hai_apna_अरुण© मेरी रचना कमसिन इश्क के कुछ अंश जब रात ढले और ख्वाब आये, जब नीद खुले और याद आये, जब इश्क की गलियां रंगीन हो, जब यादें भी #तुम्हारी हसीन हो, जब जुल्फ तुम्हारी लहराये अम्बर पे #घटायें छा जायें