एक डाल पे बैठा पंछी खोजे बाट जाने जिसकी, बेचैन निगाहों से नजरे दौड़ाता कौतूहल में, शिकारी की चाल समझ वो दिखता चालाकी, सूझ के बाद में फंस जाता वो एक पल में। हमारा तृष्ण हमारे अभिमान को सुदृढ़ करता है, जोखिमों को भी अनायास समझे वो सरल है, जब अटकती है सांस तो वो शोर करता है, चिल्लता है कि ना करूंगा फैसला एक पल में। एक पल कहने को लगते बस छोटे से वर्ण है, पर असल जिंदगी में ये जटिल और विरल है, जिनको प्रयास है वो बदल गए है स्वर्ण में, बाकी कहां बदलती हैं जिंदगी एक पल में। पल की बाते पल में करना पल भर का पागलपन है, मन में पल रहे पल का निवारण है बस इसी पल में जो छल लिए पल को फिर अगले पल में आगमन है, पल भर की पल की तृष्णा मिटा दो एक पल में। एक पल में क्या नहीं हो जाता कुछ मिल जाता है कुछ खो जाता है हक़ीक़त सपना हो जाती है सपना हक़ीक़त हो जाता है रोने वाला हंस देता है