मन की पीड़ा को शब्दों में सजाया है अधूरी हकीकत को पूरा दिखाया है बात यह नहीं कि कैसे बतलाया जाये मकसद यह है कि यथार्थ कैसे दिखाया जाये पता नहीं क्यों, इसमें भी आनंद आने लगा पन्ने पलटते-पलटते चेहरा मुस्कराने लगा कपोल में कल्पनाओं का जन्म होने लगा समय गुजरते नया व्यक्तित्व बनने लगा नए आयाम बने पर हकीकत पीछे छूट गयी सशक्त होते हुए भी अबला टूट गयी कागजों की दुनिया में जगह मिलने लगी पर अफ़सोस की हकीकत किस्सा बन रह गयी © राहुल अग्रवाल (रॉय) #अबला