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वो पूछते है अक्सर आप इश्क़ पे ज़्यादा कुछ लिखते नहीं

वो पूछते है अक्सर आप इश्क़ पे ज़्यादा कुछ लिखते नहीं
इस एहसास पर आपके लफ्ज़ कुछ ख़ास टिकते नहीं

जवाब यूँ था मेरा , मतलबपरस्ती के इस दौर में 
सस्ते जज़्बातों पर लफ्ज़ मेरे बिकते नहीं

अब दिल सिर्फ जलते हैं नाइत्तिफ़ाक़ियों की आग में
इश्क़ की सुनहरी आंच में साहेब ये अब सिकतें नहीं

वो जो गैर मशरूत मोहब्बत किया करते थे
किसी और ज़माने के थे वो लोग अब दिखते नहीं वो पूछते है अक्सर आप इश्क़ पे ज़्यादा कुछ लिखते नहीं
इस एहसास पर आपके लफ्ज़ कुछ ख़ास टिकते नहीं

जवाब यूँ था मेरा , मतलबपरस्ती के इस दौर में 
सस्ते जज़्बातों पर लफ्ज़ मेरे बिकते नहीं

अब दिल सिर्फ जलते हैं नाइत्तिफ़ाक़ियों की आग में
इश्क़ की सुनहरी आंच में साहेब ये अब सिकतें नहीं
वो पूछते है अक्सर आप इश्क़ पे ज़्यादा कुछ लिखते नहीं
इस एहसास पर आपके लफ्ज़ कुछ ख़ास टिकते नहीं

जवाब यूँ था मेरा , मतलबपरस्ती के इस दौर में 
सस्ते जज़्बातों पर लफ्ज़ मेरे बिकते नहीं

अब दिल सिर्फ जलते हैं नाइत्तिफ़ाक़ियों की आग में
इश्क़ की सुनहरी आंच में साहेब ये अब सिकतें नहीं

वो जो गैर मशरूत मोहब्बत किया करते थे
किसी और ज़माने के थे वो लोग अब दिखते नहीं वो पूछते है अक्सर आप इश्क़ पे ज़्यादा कुछ लिखते नहीं
इस एहसास पर आपके लफ्ज़ कुछ ख़ास टिकते नहीं

जवाब यूँ था मेरा , मतलबपरस्ती के इस दौर में 
सस्ते जज़्बातों पर लफ्ज़ मेरे बिकते नहीं

अब दिल सिर्फ जलते हैं नाइत्तिफ़ाक़ियों की आग में
इश्क़ की सुनहरी आंच में साहेब ये अब सिकतें नहीं