Dil एक पल में ही कैसे सब समा बदल गया, सोया रहा कुंभकर्ण शहर सारा जल गया। धूर्तो के राज में कमान थी विभिषणो को अकाल दंश काल का कितनों को निगल गया। रावण को मारने को रावणों ने स्वांग रचा जो, देख हाल जग का रावण लज्जा से जल गया। अमृत के शहर में चींखती रही रात भी, चिताओं की आग में स्वर्ण धाम भी पिघल गया। और मौन है आज वक्त भी उस मंजर को देखकर, विजय का त्योंहार कैसे मातम में बदल गया। एक पल में ही कैसे सब समा बदल गया, सोया रहा कुंभकर्ण शहर सारा जल गया। इस कविता का मुख्य उद्देश्य उन धूर्त सत्ताधारीयो, प्रशासन में मौजूद विभीषणों को तथा शीत निद्रा में सोए कुंभकर्णो को चिन्हित करना है जिनकी लापरवाही, गैरजिम्मेदारी, और सत्ता के नशें ने ना जाने कितने ही घर बर्बाद कर दिए। #amritsartrainaccident #amritsar #amritsartragedy #nojotohindi #hindiwriters #hindipoetry #tarunvijभारतीय