बड़ी गुमसुम सी शामें हैं, बड़ी गहरी सी रातें हैं, दिए हों चाहे कितने भी, अंधेरे घिर ही आते हैं..... . तुम्हारे साथ कैसा था, तुम्हारे बिन अब कैसा हूँ, नहीं है कोई मंजिल जब, फिर क्यूँ राह में बैठा हूँ, मुसाफिर था, मुसाफिर हूँ, कहूँ क्या मैं, मैं कैसा था, जले जब दिल चुपके से, बस फिर गीत भाते हैं, बड़ी गुमसुम सी शामें हैं, बड़ी गहरी सी रातें हैं। #गुमसुम_शाम #गहरी_रात