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था और ‛है ’ में फ़र्क होता है। था को आप वापस बुला न

था और ‛है ’ में फ़र्क होता है।
था को आप वापस बुला नही सकते, और ‛है' को अपने जैसा तब्दील कर सकते है। 
गुज़रे हुए कल में बसर करना कोई समझदारी नही है.आप अपने आज को खराब कर रहे हैं और इससे ख़ुद को दुख देना है।
कोई दूरूस्त देहलीज़ आपकी बंद देहलीज़ पर आकर तस्तक नहीं देगी. आपको आपने ज़ेहनी देहलीज़ के दरवाजों को खोलना पड़ेगा और हर फैसले का गर्मजोशी के साथ इस्तक़बाल करना पड़ेगा।
ARZ-ए-SAYED था और ‛है ’ में फ़र्क होता है।
था को आप वापस बुला नही सकते, और ‛है' को अपने जैसा तब्दील कर सकते है। 
गुज़रे हुए कल में बसर करना कोई समझदारी नही है.आप अपने आज को खराब कर रहे हैं और इससे ख़ुद को दुख देना है।
कोई दूरूस्त देहलीज़ आपकी बंद देहलीज़ पर आकर तस्तक नहीं देगी. आपको आपने ज़ेहनी देहलीज़ के दरवाजों को खोलना पड़ेगा और हर फैसले का गर्मजोशी के साथ इस्तक़बाल करना पड़ेगा।
ARZ-ए-SAYED
था और ‛है ’ में फ़र्क होता है।
था को आप वापस बुला नही सकते, और ‛है' को अपने जैसा तब्दील कर सकते है। 
गुज़रे हुए कल में बसर करना कोई समझदारी नही है.आप अपने आज को खराब कर रहे हैं और इससे ख़ुद को दुख देना है।
कोई दूरूस्त देहलीज़ आपकी बंद देहलीज़ पर आकर तस्तक नहीं देगी. आपको आपने ज़ेहनी देहलीज़ के दरवाजों को खोलना पड़ेगा और हर फैसले का गर्मजोशी के साथ इस्तक़बाल करना पड़ेगा।
ARZ-ए-SAYED था और ‛है ’ में फ़र्क होता है।
था को आप वापस बुला नही सकते, और ‛है' को अपने जैसा तब्दील कर सकते है। 
गुज़रे हुए कल में बसर करना कोई समझदारी नही है.आप अपने आज को खराब कर रहे हैं और इससे ख़ुद को दुख देना है।
कोई दूरूस्त देहलीज़ आपकी बंद देहलीज़ पर आकर तस्तक नहीं देगी. आपको आपने ज़ेहनी देहलीज़ के दरवाजों को खोलना पड़ेगा और हर फैसले का गर्मजोशी के साथ इस्तक़बाल करना पड़ेगा।
ARZ-ए-SAYED