कड़वाहट रिश्तों की ग़ालिबन, यूँ भावनाओं में घुलती रही। कि मोम सी कोमल ज़िंदगी मेरी, पल पल ही पिघलती रही। उन्हें मेरे जज्बातों से खेलने का शौक, इस क़दर ज़रूरी था। कि ज़ाहिल हरक़तों से उसकी, मेरी ज़िंदगी ही बदलती रही। उसको ज़रा सी भी कद्र न रही, मेरी कभी इस जीवन में। और मैं उसको पाने के लिए, पल पल यूँ ही मचलती रही। काश कि मैं उससे कभी, इस ज़िन्दगी में ना मिलती ख़ुदा। खुद की ज़िंदगी जीने के लिए, मैं हर पल ही तरसती रही। जाने क्यूँ लोग खेलते हैं, लड़कियों की ज़िंदगी से अक्सर। मैं इसका शिकार हुई, इस जाल में फंस के तड़पती रही। ♥️ Challenge-578 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।