कहो *सांझ* कहना है कुछ, कि सुनना है मन के खेल.... ईर्ष्या, द्वेष,लोभ..मोह मन को बहुत भाते हैं, मन इन्हीं सब में ही.... उलझा रहना चाहता है, वास्तव में मन हमारी परीक्षा ले रहा होता है, मन का ये विशिष्ट योग,