("बीते दिन") मैं जब भी अकेला होता हूँ तुम चुपके से आ जाती हो और झाँक के मेरी आँखों में बीते दिन याद दिलाती हो। मस्ताना हवा के झोँकों से हर बार वो पर्दे का हिलना पर्दे को पकड़ने की धुन में दो अजनबी हाथों का मिलना आँखों में धुआँ सा छा जाना साँसों में सितारे से खिलना बीते दिन याद दिलाती हो।। मुड़-मुड़ के तुम्हे रस्ते में तकना वो जाते-जाते मेरा ठिठक कर रुक जाना तुम्हारे "कशिश" के क़रीब आते-आते, नज़रों का तरस कर रह जाना एक और झलक पाते-पाते बीते दिन याद दिलाती हो।। बालों को सुखाने के ख़ातिर छत पे वो तुम्हारा आ जाना और मुझे मुक़ाबिल पाते ही कुछ शर्माना कुछ डर जाना हमसायों के डर से कतराना घर वालों के डर से घबराना बीते दिन याद दिलाते हो।। अब रो-रो के तुम्हें बस खत लिखता हूँ ख़ुद पढ़कर रो लेता हूँ, हालात के तपते तूफ़ां में जज़्बात की कश्ती खेती हूँ कैसे हो?कहाँ हो?कुछ तो कहो,मैं तुम को सदाएं देता हूँ मैं जब भी अकेला होता हूँ तुझे ही करता हूं।। *Drishtant Yadav* #बीते_दिन #Poem #loveSpecial #मेरे_अल्फाज #YaadoKaKaarva #DrishtantYadav(Arpit) #Mr_D✍️✍️ follow me and love me