सफर-ए-जिन्दगी में मकाम ऐसे भी आए की जो ना कहा वो भी सहना पड़ा! अल्फाजों की गलती जरा भी न थी, पर हमको बहुत कुछ समझना पड़ा! जिनको समझा सबसे अजीज हमने, उन रकीब से ही अक्सर उलझना पड़ा! बेहतर हुआ समझ हम गए, जो ना सुनना था वो भी सुनना पड़ा! जिनको मुकम्मल होना ना था, उन ख्वाबों को खामखां बुनना पड़ा,! पेशानी पर लिख गई है परशानी,, और हमको लेकर उसको टहलना पड़ा! ना सवाल ना, जवाब ना,गिला ही रहा' जो था नहीं अपना उसे बिछड़ना पड़ा,! कबतक करोगी अफसोस "योगिनी,, जो फरेबी है दिखावा उनको करना पड़ा! बात बिल्कुल गलत है ये नहीं,, जो जैसा था उसको वैसा रहना पड़ा! ---#योगिनी जौनपुरी #dear #zindgi# #nojoto