बचपन और माँ बचपन मानो खुशियों का खजाना होता है। बचपन वाली माँ उस खजाने की तिजोरी की चाभी मुझे याद है कि मैंने बचपन में नहीं माॅगी कभी माफी। खुद गलती कर चिल्लाती फिर भी माँ मेरे हाथों में पकड़ाती टाॅफी। मुझे याद है कि मैंने बचपन में नहीं माॅगी कभी माफी। जीने का ओ अंदाज भी सुहाना होता है। बचपन मानो खुशियों का खजाना होता है। उस दौर ना ही बंदिशें पाबंद लगाती है। ना ही समाज की बातें समझ में आती है। अब दुनिया की बातें समझ में आ गई है। मासूम नासमझी अपने दौर में ही समा गई है। दुनिया के रफ्तार के साथ मेरी बचपन वाली माँ कहीं खो गई है। इस रफ्तार में ही कहीं मेरी बचपन खो गई है। कहती है मेरी माँ अब तू बड़ी हो गई है। Gaurav ritika shukla #naojoto #love u maa#love bachpan