ख़्वाबों की बस्ती बसी हर नगर-गाँव मनवा सभी का ख़्वाब देखे धूप-छाँव पहरा नहीं इस पर "ख़्वाब" अलबेला इत-उत भटके मन मेरा छैल-छबिला मुक़ाम हांसिल नहीं होता सबको यहाँ हर ख़्वाब को नसीब हैं, मंज़िल कहाँ कुछ बिखरते हैं कुछ संवरते "कृष्णा" विश्वास हिम्मत से हांसिल मुक़ाम यहाँ ♥️ Challenge-571 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।