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1. लघुकथा:- ईश्वर और मनुष्य ----------------------

1. लघुकथा:- ईश्वर और मनुष्य
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ईश्वर हमेशा हम सभी के साथ रहते हैं।वे किसी न किसी माध्यम से हमारी सहायता करते हैं।लड़कियाँ आसानी से लिफ़्ट नहीं देतीं लेकिन उस दिन मैंने जैसे ही लिफ़्ट माँगी उन्होंने तुरन्त अपने पीछे बिठा लिया। शेष - कैप्शन में पढ़ें ----- 
मैं उस दिन सुबह सुबह पैदल ही माता के दर्शन करने के लिए चल दिया।गाँव के बाहर एक मन्दिर है वहाँ बैठा था कि जीजू का कॉल आया आजाओ यार कैलादेवी के दर्शन करने चलेंगे 9 बजे से।मैंने कहा ठीक है आता हूँ।सोचा कि घर बाइक लेने क्या जाऊँ यहीं से किसी के साथ बैठ जाता हूँ।कई लोगों ने बाइक रोकी पूछा भी कैसे घूम रहे हो कहीं जा रहे हो क्या चलो छोड़ दें।मैने सभी से मना कर दिया। मेरा मूड था कि 7 km दौड़ कर जाऊँ और सैंपऊ से रूपवास की बस पकड़ लूँगा।मैं कुछ दूर ही दौड़ पाया था कि तभी एक स्कूटी सवार लड़की सामने आती दिखाई दी।उसने अपना चेहरा मास्क से ढका हुआ था।मैंने बिना देर किए उससे लिफ़्ट माँग ली।उसने भी तुरन्त अपनी स्कूटी रोकी और मुझे बिठा लिया।मैंने पूछा कहाँ जा रही हो सुबह सुबह तो उसने बताया कि PHC मैं कम्पाउंडर हूँ ड्यूटी पे जा रही हूँ।हम बातें कर ही रहे थे कि अचानक वो चीख़ने लगी रोने लगी हाइवे पर स्कूटी की रेस बढ़ गयी पूछा क्या हुआ उसने बोला मेरी पीठ जैसे ही मैंने उसकी पीठ पर हाथ रखा कुछ मेरी पकड़ में आया।मुझे लगा कि दुर्घटना होने वाली है लेकिन जब मैंने उसे पकड़ लिया तो स्कूटी रुक गयी।ऐसे तैसे करके हम दोनों उतरे।मुझे बहुत डर लग रहा था।जैसे कोई साँप पकड़ लिया हो।उसे बाहर कैसे निकालें।हम दोनों ईश्वर को याद करने लगे हिम्मत करके उसे अपने सामने खड़ा होने के लिए बोला और धीरे धीरे उनका कोट उतारा जैसे ही मैंने उसे दूर फैंका उसमें से एक गिरगिट जैसा विषैला जीव निकल कर भाग गया।कहते हैं कि उसका काटा बचता नहीं हैं।हिम्मत करके मैं स्कूटी चलाके ले गया और ईश्वर का बहुत बहुत शुक्रिया अदा किया।

©दिव्यांशु पाठक
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#कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #kkpc23 #ईश्वरऔरमनुष्य #पाठकपुराण .....
1. लघुकथा:- ईश्वर और मनुष्य
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ईश्वर हमेशा हम सभी के साथ रहते हैं।वे किसी न किसी माध्यम से हमारी सहायता करते हैं।लड़कियाँ आसानी से लिफ़्ट नहीं देतीं लेकिन उस दिन मैंने जैसे ही लिफ़्ट माँगी उन्होंने तुरन्त अपने पीछे बिठा लिया। शेष - कैप्शन में पढ़ें ----- 
मैं उस दिन सुबह सुबह पैदल ही माता के दर्शन करने के लिए चल दिया।गाँव के बाहर एक मन्दिर है वहाँ बैठा था कि जीजू का कॉल आया आजाओ यार कैलादेवी के दर्शन करने चलेंगे 9 बजे से।मैंने कहा ठीक है आता हूँ।सोचा कि घर बाइक लेने क्या जाऊँ यहीं से किसी के साथ बैठ जाता हूँ।कई लोगों ने बाइक रोकी पूछा भी कैसे घूम रहे हो कहीं जा रहे हो क्या चलो छोड़ दें।मैने सभी से मना कर दिया। मेरा मूड था कि 7 km दौड़ कर जाऊँ और सैंपऊ से रूपवास की बस पकड़ लूँगा।मैं कुछ दूर ही दौड़ पाया था कि तभी एक स्कूटी सवार लड़की सामने आती दिखाई दी।उसने अपना चेहरा मास्क से ढका हुआ था।मैंने बिना देर किए उससे लिफ़्ट माँग ली।उसने भी तुरन्त अपनी स्कूटी रोकी और मुझे बिठा लिया।मैंने पूछा कहाँ जा रही हो सुबह सुबह तो उसने बताया कि PHC मैं कम्पाउंडर हूँ ड्यूटी पे जा रही हूँ।हम बातें कर ही रहे थे कि अचानक वो चीख़ने लगी रोने लगी हाइवे पर स्कूटी की रेस बढ़ गयी पूछा क्या हुआ उसने बोला मेरी पीठ जैसे ही मैंने उसकी पीठ पर हाथ रखा कुछ मेरी पकड़ में आया।मुझे लगा कि दुर्घटना होने वाली है लेकिन जब मैंने उसे पकड़ लिया तो स्कूटी रुक गयी।ऐसे तैसे करके हम दोनों उतरे।मुझे बहुत डर लग रहा था।जैसे कोई साँप पकड़ लिया हो।उसे बाहर कैसे निकालें।हम दोनों ईश्वर को याद करने लगे हिम्मत करके उसे अपने सामने खड़ा होने के लिए बोला और धीरे धीरे उनका कोट उतारा जैसे ही मैंने उसे दूर फैंका उसमें से एक गिरगिट जैसा विषैला जीव निकल कर भाग गया।कहते हैं कि उसका काटा बचता नहीं हैं।हिम्मत करके मैं स्कूटी चलाके ले गया और ईश्वर का बहुत बहुत शुक्रिया अदा किया।

©दिव्यांशु पाठक
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