मसरूफियत का आलम क्या कहें बिन काजल आंखें सुनी हैं कई दिन बीते उलझी सी है लट सुलझाई ही नहीं है कई दिन बीते आईना भी रूठा है मुस्कुराता नहीं है देख मुझे कई दिन बीते एक सवाल सिर्फ उसकी निगाह का है जो मुझ पर नहीं पड़ी है कई दिन बीते ©तृप्ति #Masrufiyat