वह रोज़ अपने छत से चांद को देखते और मुस्कुराते, जैसे कि वह कुछ उनसे कह रहा है। जैसे ही मैं बगल वाली छत पर जाती, तो नज़रें झुका कर चले जाते। उनको इस तरह मेरे आने का एहसास होना, मुझे भी उल्लासित करता। आज मैं भी २० साल बाद बालकनी में खड़े होकर जब चांद को देखती हूं। हमारी शादी का किस्सा याद आ जाता है। इस चांद ने कितनों को इस तरह मिलाया होगा। पर मैं मुस्कुराने से पहले इधर उधर देख ज़रूर लेती हूं। #yostowrimo में एक वार्तालाप लिखें। ध्यान रहे कविता नहीं कहानी के रूप में लिखना है। #चाँदऔरमैं #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi