क्या पता उन बीहड़ों में गुलिस्ता मिल जाता, तुमने कभी ढूंढने कि "कोशिश ही नहीं की", क्या पता इन काटों के ऊपर गुलाब खिल जाता, तुमने एक बार भी सिंचने कि "कोशिश ही नहीं की", क्या पता उस बिखरे रिश्ते में फिर से खुशी मिल जाती, एक बार भी तुमने समझने कि "कोशिश ही नहीं की"। ©Sakchhi(Shivaya) #कलमसाक्षी #itssakchhi #koshish #poem #hindi_poetry