इमरोज़ मिरी कलगी चली कोरे कागज़ पर कुछ ऐसे, बेख़ौफ़ सी सरिताओं की आँब ए रवाँ बहती हो जैसे, अन्तरात्मा से ध्वनि का कम्पन हुआ,ए ठहर तो जरा, क़लम को बेबाक़ी सहन न थी, मानो उन्माद हो भरा, काफ़िर क़लम तेज तर्रार थी,सभी विषयों पर तंज कसा, कातिब के मन का सारा क्षुब्ध सार कोरे कागज़ पर रचा। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏 📌 रचना का सार..📖 के Pin Post पर 📮 वाले नियम अवश्य पढ़े..😊🙏 💫Collab with रचना का सार..📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को प्रतियोगिता:-69 में स्वागत करता है..🙏🙏