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नारी तु एक नहीं,  तुझसे अनेक हैं। तुझसे ही यह घर,

नारी
तु एक नहीं,  तुझसे अनेक हैं।
तुझसे ही यह घर, यह जग, यह संसार हैं।
तु नारी नहीं, तु जननी हैं।
तु गौरी ही नहीं, तु काली भी हैं।
तु लक्ष्मी, सरस्वती, तु अर्धनारीश्वर भी हैं।
तु एक नहीं, तुझसे अनेक हैं।
तु जल नहीं, तु जल स्त्रोत हैं।
तु हवा नहीं, तु तुफ़ान हैं।
तु कलंक नहीं, तु माथे का ताज हैं।
तु भार नहीं, तु उधार हैं।
तु एक नहीं, तुझसे अनेक हैं।
तुझसे  यह घर , यह जग , यह संसार हैं।
                                -नेहा परविन-

©neha
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