।। ओ३म् ।। त्रिर्नो॑ अश्विना दि॒व्यानि॑ भेष॒जा त्रिः पार्थि॑वानि॒ त्रिरु॑ दत्तम॒द्भ्यः । ओ॒मानं॑ शं॒योर्मम॑काय सू॒नवे॑ त्रि॒धातु॒ शर्म॑ वहतं शुभस्पती ॥ पद पाठ त्रिः । नः॒ । अ॒श्वि॒ना॒ । दि॒व्यानि॑ । भे॒ष॒जा । त्रिः । पार्थि॑वान् । त्रिः । ऊँ॒ इति॑ । द॒त्त॒म् । अ॒त्भ्यः । ओ॒मान॑म् । श॒म्योः । मम॑काय । सू॒नवे॑ । त्रि॒धातु॑ । शर्म॑ । व॒ह॒त॒म् । शु॒भः॒ । प॒ती॒ इति॑॥ मनुष्यों को चाहिये कि जो जल और पृथिवी में उत्पन्न हुई रोग नष्ट करनेवाली औषधी हैं उनका एक दिन में तीन बार भोजन किया करें और अनेक धातुओं से युक्त काष्ठमय घर के समान यान को बना उसमें उत्तम-२ जव आदि औषधी स्थापन अग्नि के घर में अग्नि को काष्ठों से प्रज्वलित जल के घर में जलों को स्थापन भाफ के बल से यानों को चला व्यवहार के लिये देशदेशान्तरों को जा और वहां से आकर जल्दी अपने देश को प्राप्त हों इस प्रकार करने से बड़े-२ सुख प्राप्त होते हैं ॥ Humans should eat food that is a disease-destroying drug produced in water and earth three times in a day and make a vehicle like a wooden house with many metals, making the best medicine in it, setting fire in the house of fire. Place the waters in the house of water ignited by wood, go abroad to the countries for the practice of running the vehicles with the help of force, and come from there and get to your country quickly, in this way, you get great happiness. ( ऋग्वेद १.३४.६ ) #ऋग्वेद #वेद #मंत्र