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धूल भरी किताबों के बीच मुड़े हुए पन्नों को ढूंढता

धूल भरी किताबों के बीच
मुड़े हुए पन्नों को ढूंढता हूं मैं
औरों को मनाते-मनाते
अकसर खुद से रुठता हूं मैं
कभी खुद से ही बनता हूं तो
कभी खुद में ही टूटता हूं मैं
सफर में यूं ही चलते चलते 
रास्तों से रास्ता पूछता हूं मैं
कभी बादलों के पीछे छिपे
आसमान को ढूंढता हूं मैं
कभी इंसान में ही कही
इंसान को ढूंढता हूं मैं !! खुद में ही कहीं खुद को ढूंढता हूं मैं
a poetry by Mukesh bisht
#hindi_poetry #khoj #Poetry #mukeshbisht #hindiwriting #खोज #जिंदगी #mukeshbishtpoem

#darkness
धूल भरी किताबों के बीच
मुड़े हुए पन्नों को ढूंढता हूं मैं
औरों को मनाते-मनाते
अकसर खुद से रुठता हूं मैं
कभी खुद से ही बनता हूं तो
कभी खुद में ही टूटता हूं मैं
सफर में यूं ही चलते चलते 
रास्तों से रास्ता पूछता हूं मैं
कभी बादलों के पीछे छिपे
आसमान को ढूंढता हूं मैं
कभी इंसान में ही कही
इंसान को ढूंढता हूं मैं !! खुद में ही कहीं खुद को ढूंढता हूं मैं
a poetry by Mukesh bisht
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mukeshbisht8547

Mukesh Bisht

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