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जितना खोजा, उतना उलझा, अनन्त भी अनन्त में खोया, वि

जितना खोजा, उतना उलझा,
अनन्त भी अनन्त में खोया,
विश्व है सीमित, पर ब्रह्माण्ड के,
अन्तिम छोर का पता नहीं।। 





वृहद पिण्ड , कण-2 की भाँति,
घूम रहे, कक्षाओं में,
जिस परमाणु से हैं निर्मित,
उसकी गहराई का पता नहीं।। 



कोई न जाने परमपिता का,
कितना सूक्ष्म, विराट स्वरूप,
दसों दिशा, सर्वत्र विराजे 
मानव को बस पता नहीं।।

©Tara Chandra Kandpal #ब्रह्माण्ड
जितना खोजा, उतना उलझा,
अनन्त भी अनन्त में खोया,
विश्व है सीमित, पर ब्रह्माण्ड के,
अन्तिम छोर का पता नहीं।। 





वृहद पिण्ड , कण-2 की भाँति,
घूम रहे, कक्षाओं में,
जिस परमाणु से हैं निर्मित,
उसकी गहराई का पता नहीं।। 



कोई न जाने परमपिता का,
कितना सूक्ष्म, विराट स्वरूप,
दसों दिशा, सर्वत्र विराजे 
मानव को बस पता नहीं।।

©Tara Chandra Kandpal #ब्रह्माण्ड
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Tara Chandra

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