कंक्रीट के जंगल मैं और उस जंगल के , पिंजरे जैसे फ्लैट मै रहने वाले लोग क्या जाने , गाँव के खुलेपन कि आजादी क्या होती है। वो वाहनों के शोर शराबें और उसके दम घुटा देने वाले धुऐं में रहने वाले लोग क्या जाने, कि गाँव के चंचल हवा कि धुन और खुशबू क्या होती है। स्नेहा गुप्ता #कंक्रीट के #जंगल और #गाँव कि #शुद्धता