ऐ रात हथेली फैला दे, मैं जुगनू लेकर आया हूँ सदियों से जाग रही है तू, इक ख़्वाब का पैकर लाया हूँ।। रंजीदा हवाएं फिरतीं हैं सूरज पे नमी सी ठहरी है, ऐ शामें- परीशां रुक जा ज़रा मैं सुबह का मंज़र लाया हूँ।। जाने दे अब्र को सहरा में ज़र्रों की प्यास बुझाने दे, मैं प्यास का दरिया हूँ लेकिन आंखों में समंदर लाया हूँ।। हर बार दिया इल्ज़ाम तुझे, ऐ दिल अब तेरी मर्ज़ी है, कर चाक गिरेबां,चाक कफ़न, मैं साथ ये ख़ंजर लाया हूं।। अल्फा़ज़ के छप्पर टूटे रिश्ते और् दर्द की गीली मिट्टी से, सदियों में मुकम्मल होता है इक ख़्वाब का खंडहर लाया हूँ।। चाहो तो बनाकर बुत पूजो चाहो तो रखो कदमों के तले, हर हाल में खु़श रहना है जिसे लाचार वो पत्थर लाया हूँ।। एहसास के दरिया में देखो तो दर्द के मोती होते हैं, मैं डूब के इस दरिया में खुद को ढूंढ के अक्सर लाया हूँ।। आबिद जा़हिद और शेख़ ब्रह्मन दैरो-हरम को जाते हैं , मैं नादान "अलीम" किसी मुफ़लिस को घर पर लाया हूँ।। #yqaliem #yqbhaijan #raat #jugnu #khwabkapaikar #ehsaas #tuterishte #dard