चाय का कप वैसे का वैसा खिड़की की ओट में रखा रहा, "मै" और "वो" मानो बहुत ही गहरी सोच में डूबे थे, सुध ही नहीं रही, वक़्त न जाने कब सरकते-सरकते रात की बाहों में चला गया..मै सकपका के उठी, कप को हाथ में लिया और कहा "तुम मुझे अकेला ख़यालों में भी नहीं छोड़ते हो, बोलते कुछ नहीं हो, पर मेरी तन्हाई में मेरे साथ हमेशा रहते हो, बोलो तो, "मै", "तुम्हारी" क्या लगती हूं, ऐसा लगा मानो "कप" ज़ोर से हँसा और मै भी यह सोचकर हँसने लगी, कभी-कभी निर्जीव वस्तुएं भी जीवित प्रतीत होती हैं..रिश्ता ही कुछ ऐसा बन जाता है उनके साथ.मन से मन के तार जुड़ जाते हैं,क्यों है न!! #Us_din #कपऔरमै #लघुकथा #NojotoMicrotale #NojotoHindi #Nojoto