शौर्य उसका कवच था, "कर्म" ही उसका वर्ण सामर्थ्य उसकी पहचान थी, वो था महावीर कर्ण बिन परीक्षा किए, सर्बश्रेष्ट धनुर्धर अपना चुन लिया! बल से नहीं छल से सही, बेशक तुम्हारा जीत हुआ! जब आयी बिपत्ति पाँच पुत्रों पे, एक पुत्र और भी है तब माता को ज्ञान हुआ भय तो था तुम्हारे भीतर भी, कपट से कवच उसका छीन लिया धर्मक्षेत्र में, एक निशस्त्र को तुरंत ही मारना पड़ा था