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वक़्त की नज़ाकत से भी आहात होकर, दुनिया छोड़ने का मन

 वक़्त की नज़ाकत से भी आहात होकर,
दुनिया छोड़ने का मन बना लिया हमने..!

क़ैद हम पिंजरे में बेगुनाह होकर भी,
समां लिया ख़ुद में हमको ग़म ने..!

उखाड़ने को पैर हमारे चाहत अपनों की ही रही,
दोगलापन दिखा कर न दिए जमीं पे जमने..!

द्वेष अलगाव की स्थिति बना दी गई ऐसी,
न होने देते किसी के लिए जरा भी रमने..!

बनाते रहे ख़ुदा ख़ुद को यूँ ही ज़माने में,
इंसान को इंसानियत से दूर किया तुमने..!

©SHIVA KANT
  #poetbyheart