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212 212 212 //212 212 212 जिंदगी की जरूरत नहीं

212 212 212 //212 212 212

जिंदगी  की  जरूरत नहीं  अब  खुशी  की  जरूरत नहीं।
तुम न पूछो कि क्या  चाहिए अब किसी की जरूरत नहीं।

हो  मुक्कमल  अंधेरा यहां  दीप अब  ना जले  चाहता हूं।
आदतों  में  अंधेरा  है शामिल  रोशनी  की  जरूरत नहीं।

सांस  अब  ना  चले  जिस्म में  और  अब ना  पले चाहतें।
बात  जो  भी कहा  तुम सुनो अब है इसकी  जरूरत  नहीं।


बाग खिल ना सके अब यहां तितलियों से गिला अब हुआ।
मत बरश  बादलों बारिशे अब  इस जमीं की जरूरत नहीं।

एक  पल में   मिटाया  मुझे  देख  अपनी  हिमाकत सनम।
रोत रोते   यूं   "दीपक"   कहा   संगिनी की  जरूरत  नहीं।


©®
दीपक झा " रुद्रा" #जिंदगी #अंधेरों_को_पता_चले  #गजलें  #हिंदीशायरी #काव्यशाला #कवि

#Light
212 212 212 //212 212 212

जिंदगी  की  जरूरत नहीं  अब  खुशी  की  जरूरत नहीं।
तुम न पूछो कि क्या  चाहिए अब किसी की जरूरत नहीं।

हो  मुक्कमल  अंधेरा यहां  दीप अब  ना जले  चाहता हूं।
आदतों  में  अंधेरा  है शामिल  रोशनी  की  जरूरत नहीं।

सांस  अब  ना  चले  जिस्म में  और  अब ना  पले चाहतें।
बात  जो  भी कहा  तुम सुनो अब है इसकी  जरूरत  नहीं।


बाग खिल ना सके अब यहां तितलियों से गिला अब हुआ।
मत बरश  बादलों बारिशे अब  इस जमीं की जरूरत नहीं।

एक  पल में   मिटाया  मुझे  देख  अपनी  हिमाकत सनम।
रोत रोते   यूं   "दीपक"   कहा   संगिनी की  जरूरत  नहीं।


©®
दीपक झा " रुद्रा" #जिंदगी #अंधेरों_को_पता_चले  #गजलें  #हिंदीशायरी #काव्यशाला #कवि

#Light