हम सोने की दुकानों में खुशियां ढूंढते रहे, मिट्टी में खेलता सुकून रहा। हम बेटी को तहजीब सिखाने में मशगूल रहे, बेटा किसी मासूम का दुपट्टा पैरों में रौन्दता रहा। गर सोता हो कोई तो जगाना बहुत आसान है, जो जागकर आंखें मूंद ले उसे उठाऊं कैसे। सियासत तू मेरी जरूरत पर मुझसे खेल रहा है, मै मुसीबत में हू। ऐ बेगैरत सरकार अगर मजहब के मसले से फुर्सत मिले, तो मसला मेरा भी सुलझा दे। बता दे हवस के दरिन्दो से, मैं अपनी गुड़िया बचाऊ कैसे। #ek_sawal_siyasat_se