वैलयू वाटएवर यू हैव, बी इट मनी, टाइम और अ परसन प्रसाद जी ने कहा है कि 'प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु-से सरल ह्रदय की वस्तु है'। मुझे लगता है प्रसाद जी ने यह लिखते वक़्त बहुत मन से चाहा होगा कि लोग प्रेम में चतुर न बनें। जिस काम में चतुराई शामिल होती है, वह खेल बन जाता है। खेल में आप केवल ख़ुद की जीत के बारे में ही सोचते हो जबकि प्रेम में आप दो लोगों की जीत को ही जीत कह सकते हो, यदि सिर्फ एक जीतता है, तो वह दोनों की हार होती है। प्रेम में कई कसौटियाॅं होती हैं या यूॅं कहें कि प्रेम का पूरा सफ़र कसौटियों के ही इर्द-गिर्द घूमता है। प्रेम की एक बहुत कठिन कसौटी प्रेम की अनुपस्थिति में होती है। बात थोड़ी हैरतअंगेज है पर सौ टका खरी है। प्रेम के पश्चात यदि आप उसे बुरा मानने लग जाते हो, तो यकीन मानिए आपके इस हरकत को देखकर प्रसाद जी स्वर्ग में मुस्कुरा रहे होते हैं कि इस मूर्ख ने मेरी बात को सच साबित कर दिया। प्रेम की एक और कसौटी होती है कि वो आपके अहंकार की परीक्षा लेता है। यह कुछ लोगों के स्वभाव में होता है कि जब उसे कोई व्यक्ति या वस्तु या समय का साथ मिलता है तो वह अहंकार में उस पर उचित ध्यान नहीं देता जो उसे देना चाहिए। पर कहते हैं न कि समय से बलवान न आज तक कोई हो पाया है न हो पाएगा। वही समय पलट कर जब वार करता है तो इंसान अपराधबोध के दल-दल में गिरने लगता है, रोता है, बिलखता है पर उसके हाथ लगती है केवल उदासी। इसलिए 'वैलयू वाटएवर यू हैव, बी इट मनी, टाइम और अ परसन'। प्रेम बिल्कुल पारिजात के पौधे की तरह पवित्र होता है। जब उसे आँसू से सींचा जाता है तो आपका मन हलका ज़रूर होता है परंतु उसे बहुत पीड़ा होती है। ऐसे में संतुलन बनाना चाहिए। उस पौधे को जल्द से जल्द एक हंसता-खेलता वातावरण मिलना चाहिए। पारिजात को औषधि बनाने के काम में तब ही लिया जा सकता है जब वो पौधा हरा भरा हो। इसलिए किसी भी अनबन के बीच प्रेम को प्रभावित न होने दीजिए क्योंकि उसमें वो शक्ति होती है जो किसी भी स्थिति में आपके मन को शांत रख सकती है, किसी भी चीज़ का हल निकाल सकती है।