आपको वो उन्नाव वाला किस्सा ध्यान है ना, अरे! हाँ वही ढाई हजार किलो सोने वाला किस्सा, वो बाबा जी वाला किस्सा, भाई ऐसे कैसे भूल सकते हो उस बात को, डीएम साहब खुद खुदाई करने गए थे सबसे पहले फिर क्या था हुजूम ऐसा उमड़ा की पूछो ही ना, जहां तहां के अखबार वाले, टेलेविज़न वाले, और तो और सुना था कि पुरातत्व विभाग के साथ में नासा वाले भी आये थे। आप भूल गए हों तो कोई बात नहीं, पर ऐसा दिलचस्प किस्सा मैं तो भुलाए भी न भूल पाया हूँ, यहां तक की यादें भी धुंधली न हुई, और हो भी कैसे किस्सा था ही कुछ ख़ास, भई आम की तो छोड़ो कुछ खासम-ख़ास लोग भी(नाम उजागर नहीं करूंगा) अपने एड़ी चोटी का जोर लगा चुके थे खुदाई के लिए। सुना तो ये भी था की खजाने की रक्षा को वहाँ के राजा की आत्मा स्वयं पहरा देती है, अब ऐसे रोचक किस्से को कोई भूल जाए तो भला आर्यों की भूमि का विकास कैसे संभव है, यार खुद ही सोच के बताओ सबका साथ सबका विकास चाहिए या नहीं, और इसी कड़ी में मील का पत्थर बन के उभरा ये किस्सा। अब लगता है सब कुछ याद आ गया होगा आपको, तो थोड़ा सा आगे बढ़ते हैं, अब हुआ कुछ यूँ की खुदाई के वक़्त मजदूर कुदाल और फावड़े से, सरकार उस काम की तेजी से और हम जैसे आमजन सबसे तेज खबरी चैनेलों से ऐसे चिपक गए जैसे मधुमक्खी अपने छत्ते से, अब जनाब यहाँ एक सूत खुदाई हुई वहाँ हुक्मरान ख़ुशी से पागल हो जाने को तैयार, अब साथ में हम तो ठहरे ही चंचल स्वभाव के पढ़ाई लिखाई सब गयी एक ओर को, अर्थव्यवस्था का मतलब भी न पता था ठीक ढंग से तो, पर जो पता चला वो इतना ही की हम अमीर मुल्कों की फेहरिस्त में अव्वल होंगे, फिर क्या ना अमरीका जैसा देश भी चरण धो-धो पिएगा हमारे? और उन्नाव वालों का कहना था की अब देश की राजधानी सा सम्मान मिलना चाहिए उनको भी, और बदले में भी कुछ मिलना चाहिए, शायद उनको भी दामाद जैसे सम्मान की कामना रही हो उस वक़्त में, कोई तू भी न कह पाए वर्ना विरोध दर्ज कर देंगे और खुदाई तो एक इंच भी ना होगी, फिर क्या सरकार भी स्कीमें बनाने लगीं।