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#OpenPoetry कैसे बयां करूँ उस लड़की की कहानी, जो सु

#OpenPoetry कैसे बयां करूँ उस लड़की की कहानी, जो सुबह घर से निकल जाती थी
 वो ऑफिस की थी दीवानी...  
टिकता नहीं था उसका घर में पैर,  चाहती थी करना पूरी दुनिया की शैर 
लगता है आसान पर सफर ये उसका आसान ना था ... 
घर से निकलने से पहले,  माँ के कहे शब्द "घर टाइम पर आना" 
माँ की फ़िक्र को  जाहिर तो करते थे.. 
लेकिन मानो जैसे उसके ख्वावों की उड़ान को कम भी कर देते थे... 
वहीं घर से निकलते ही घड़ी दो घड़ी का सुकून उसे नहीं मिलता... 
घर से ऑफिस तक का रास्ता, कई उलझने... कई सवाल...
 मन में बिजली की तरह कौंध रहे होते हैं 
शाम को जरा सी देरी होने पर पापा की एक कॉल दिल को थमा देती है..
तो दूसरी ओर उन अँधेरी गलियों से गुजरने का डर सताता है... 
रात के अँधेरे में कमीज की जेब में पेन लगाए  उस लड़की के पीछे चलता कोई  शख्श 
उसे सभ्य नजर आता है ... तो वहीं मोबाइल से बात करते अपने पीछे आते, 
उस एक आदमी से उसे भय सा सताता है...मन में सिर्फ यही की कब ये अंधेरा खत्म होगा, 
और किसी स्ट्रीट लाइट की रोशनी इन अँधेरी गलियों को रोशन करेगी... 
इसी उधेड़बुन में वो कब घर के दरवाजे पर पहुंची मालूम ही ना पड़ा... 
आज का एक दिन भले खत्म हुआ हो 
पर इसी उधेड़बुन के साथ वो कल फिर 
एक नये दिन की शुरुआत
 हँसते मुस्कुराते हुए करेगी... 💟 #OpenPoetry  ՏʅԺԺнΛʀтн शुभम सिंह Naina Raj ... Kajal_meshram deba shah
#OpenPoetry कैसे बयां करूँ उस लड़की की कहानी, जो सुबह घर से निकल जाती थी
 वो ऑफिस की थी दीवानी...  
टिकता नहीं था उसका घर में पैर,  चाहती थी करना पूरी दुनिया की शैर 
लगता है आसान पर सफर ये उसका आसान ना था ... 
घर से निकलने से पहले,  माँ के कहे शब्द "घर टाइम पर आना" 
माँ की फ़िक्र को  जाहिर तो करते थे.. 
लेकिन मानो जैसे उसके ख्वावों की उड़ान को कम भी कर देते थे... 
वहीं घर से निकलते ही घड़ी दो घड़ी का सुकून उसे नहीं मिलता... 
घर से ऑफिस तक का रास्ता, कई उलझने... कई सवाल...
 मन में बिजली की तरह कौंध रहे होते हैं 
शाम को जरा सी देरी होने पर पापा की एक कॉल दिल को थमा देती है..
तो दूसरी ओर उन अँधेरी गलियों से गुजरने का डर सताता है... 
रात के अँधेरे में कमीज की जेब में पेन लगाए  उस लड़की के पीछे चलता कोई  शख्श 
उसे सभ्य नजर आता है ... तो वहीं मोबाइल से बात करते अपने पीछे आते, 
उस एक आदमी से उसे भय सा सताता है...मन में सिर्फ यही की कब ये अंधेरा खत्म होगा, 
और किसी स्ट्रीट लाइट की रोशनी इन अँधेरी गलियों को रोशन करेगी... 
इसी उधेड़बुन में वो कब घर के दरवाजे पर पहुंची मालूम ही ना पड़ा... 
आज का एक दिन भले खत्म हुआ हो 
पर इसी उधेड़बुन के साथ वो कल फिर 
एक नये दिन की शुरुआत
 हँसते मुस्कुराते हुए करेगी... 💟 #OpenPoetry  ՏʅԺԺнΛʀтн शुभम सिंह Naina Raj ... Kajal_meshram deba shah