पानी मांगतें हैं बीज मांगतें हैं फ़सल पर सूखे की राहत मांगतें हैं सारी माँगे अखबारों में ही रह जाती हैं चुनाव में ही गाहे बगाहे सुनाई पड़ती हैं तुम दिल्ली से कर्ज भेजते हो यूरोप से बीज मंगाते हो पानी का टेंडर मानसून के हवाले डाल देते हो अब कैसे होगी किसानी जब विदेशी बीज ज्यादा पानी मांगेगा मानसून का साल दर साल कुछ पता ना होगा लाचार हाथों में लाखों की रकम पकड़ा कर क्या होगा क्या नोटों की गड्डी पे सूद नहीं चढ़ेगा? #किसान #विदर्भ #आत्महत्या #YQdidi भाग-२