नफरतों के सौदागर मेरी गली से न गुजरा कर मैं नफरतों के बदले दुवा में इश्क़ बाँटता हूँ कहीं तु इश्क़ ना कर बैठे नफ़रतों से घबराकर। बिछा शतरंज की बिसात छिप गये लोग शर्माकर मैं हर चाल के बदले सबके हालचाल पूछता हूँ अब जरूरत कहाँ देखें किसी का नकाब हटाकर। झूठ की थी इमारत आखिर गिर गयी भरभराकर मैं गिरे हुये के जख्मों पे मलहम लगा उठाता हूँ मुझे तो गाँव बसाना है नफरतों के शहर जलाकर। #रविकीर्ति_की_कलम_से #ravikirtikikalamse #ravikirti_poetry #ravikirti_shayari #ravikirtimotivationalquotes #ravita #spreadhappiness #nazariya_badlo_janab